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The promise of 10 lakh jobs in a year and the reality...

2 करोड़ सालाना नौकरी देने का लक्ष्य घटाकर सरकार ने खुद अगले डेढ़ साल में 10 लाख भर्तियों का लक्ष्य तय कर दिया है।

The promise of 10 lakh jobs in a year
The promise of 10 lakh jobs in a year

The promise of 10 lakh jobs in a year: भारत में मौजूदा वक्त की रोजगार दर तकरीबन 40 प्रतिशत है। यानी काम करने लायक हर 100 लोगों में केवल 40 लोगों के पास काम है। 60 लोगों के पास काम नहीं है। मोदी सरकार के पिछले पांच साल के कार्यकाल का हिसाब किताब यह है रोगजार दर 46 प्रतिशत से घटकर 40 प्रतिशत पर पहुंच गयी है। जबकि वैश्विक मानक 60 प्रतिशत का है। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इकॉनमी के अध्यक्ष महेश व्यास बताते हैं कि हर साल भारत में तकरीबन 5 करोड़ लोगों को रोजगार मिलेगा तब बेरोजगारी की परेशानी दूर रहेगी। साल 2014 में चुनाव से पहले भारत के प्रधानमंत्री के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ने लोगों से वादा किया था कि अगर उनकी सरकार सत्ता में आती है तो हर साल दो करोड़ नौकरियां देंगे। यानी सरकार को अब तक 16 करोड़ नौकरियां दे देनी चाहिए थी। इतनी नौकरियों पर सरकार ने क्या किया? सरकार की तरफ से इस पर कोई रिपोर्ट कार्ड नहीं पेश किया गया। उल्टे प्रधानमंत्री कार्यालय की तरफ से यह ट्वीट किया गया है कि प्रधानमंत्री ने सभी मंत्रालयों और विभागों के मानव संसाधन का मुआयना किया। यह निर्देश दिया कि मिशन मोड के तहत अगले डेढ़ साल में 10 लोगों की भर्ती की जाए। मतलब 2 करोड़ सालाना नौकरी देने का लक्ष्य घटाकर सरकार ने खुद अगले डेढ़ साल में 10 लाख भर्तियों का लक्ष्य तय कर दिया है। बेरोजगार युवाओं का कहना है कि मोदी जी जुमला नहीं जॉब दीजिए। साल 2014 के बाद कितनी भर्तियां हुई? कितने को सरकारी नौकरी मिली? कितने बेरोजगरी की दुनिया से बाहर निकले? इस तरह के पुख्ता आंकड़ें सरकार के जरिये नहीं पेश किये जाते हैं। सरकार ने अब तक कोई मुकम्मल रोजगार नीति नहीं बनाई है। सब कुछ ट्वीटर और प्रधानमंत्री के भाषण के जरिये आता है। बहस का हिस्सा बनता है। बहस के जरिये ही मर जाता है। बेरोजगार बरोजगारी को लेकर लाठी खाते हैं या मरते हैं और फिर से कोई अगला जुमला उछाल दिया जाता है। अगर मुकम्मल रोजगार नीति होती तो पता चलता कि सरकार के किसी मंत्रलाय और विभाग में कितना मानव संसाधन होना चाहिए? उस मानव संसाधन को भरने के लिए कितने पोस्ट सैंक्शन किये जा रहे है? कितने भरे जा रहे हैं? कितने पोस्ट नहीं भरे गए है? यह सारी बातें सरकार की तरफ से बताने की कोई नीति नहीं है? गैर सरकारी क्षेत्र में कितनी नौकरियों की संभावना है? कितनी नौकरियां मिल रही है? कितना न्यूनतम वेतन होना चाहिए? आबादी का कितना हिसाब लेबर फोर्स में जुड़ रहा है? इसमें से कितने लोगों को नौकरी मिल जा रही है? इन सारी बातों को सरकार किसी नियत अवधि के बाद नागरिकों के साथ साझा नहीं करती है। एक रोजगार नीति न होने की वजह से सरकार की तरफ से जुमले उछाले जाते हैं। जो मीडिया में हेडलाइन तो बन जाते है लेकिन जिनका कोई मुकम्मल आधार नहीं होता। संसद में दिए गए सरकार के जवाब से पता चलता है कि साल 2018-19 में केंद्र सरकार की तरफ से तकरीबन 38 हजार नियुक्तियां की की गईं। साल 2019-20 में 1 लाख 48 हजार नियुक्तियां की गईं और साल 2020-21 में 78 हजार नियुक्तियां की गईं। इनमें अधिकतर नियुक्तियां UPSC, SSC और रेलवे के जरिए हुईं। यह पिछले तीन साल का ट्रैक रिकॉर्ड है। इस हिसाब से सोचिये कि पिछले आठ साल का ट्रैक रिकॉर्ड क्या है? यह भी सोचिये कि क्या अगले डेढ़ साल में सरकार दस लाख नौकरी दे पायेगी? बड़े ध्यान से देखिये तो यह भी दिखेगा कि प्रधानमंत्री कार्यालय की तरफ से जब डेढ़ साल में दस लाख नौकरियों का ट्वीट किया गया उसके बाद ही सरकार ने अग्निपथ योजना के तहत सेना में सालाना तकरीबन 50 हजार भर्तियां निकालने का ऐलान कर दिया। प्रचार के मकसद से किये गए इस योजना की खामियों को लेकर देश भर में बवाल मचा हुआ है। केवल नौकरियों की संख्या के लिहाज से देखें तो सरकार यह ऐलान कर देगी कि उसने दो साल में एक लाख नौकरियां दीं। लेकिन ऐसी नौकरियों की हकीकत यह है कि नौजवानों का कहना है कि यह महज चार साल की होगी। उसके बाद जिंदगी से लड़ने के लिए सड़क पर भटकने के लिए छोड़ दिया जाएगा। तो आप खुद सोचकर बताइये कि क्या ऐसी नौकरी को नौकरी कहा जाएगा? यूनियन बजट 2022-23 के मुताबिक केंद्र सरकार के तहत तकरीबन 35 लाख सरकारी नौकर काम कर रहे हैं। मतलब 135 करोड़ की आबादी में महज 35 लाख को केंद्र सरकार की नौकरी मिली है। डिपार्टमेंट ऑफ़ एक्सपेंडिचर की सलाना रिपोर्ट के मुताबिक मार्च 2020 में केंद्र सरकार के अधीन तकरीबन 40 लाख नौकरियां सैंक्शन की गयी थीं। इसमें से तकरीबन 21 प्रतिशत खाली हैं। केंद्र और राज्य सरकार की नौकरियां मिल जाएँ तो एक अनुमान के मुताबिक तकरीबन 60 लाख नौकरियां खाली हैं। यानी सरकार की दस लाख नई नौकरियाँ देने का कोई मतलब नहीं बनता। पहले तो सरकार के कामकाज से ऐसा लगता नहीं कि वह दस लाख नौकरियां देगी? अगर देगी भी तो क्या उसे नई सरकारी नौकरी कहा जाएगा या खाली सीट को भरना कहा जाएगा? केंद्र सरकार के तहत सबसे अधिक सरकारी नौकरियां रेलवे के तहत मिलती हैं। केंद्र सरकार की तकरीबन 40 प्रतिशत नौकरियों का हिस्सा रेलवे का है। साल 2022 में रेलवे में कुल कार्यरत सरकारी नौकरों की संख्या तकरीबन 12 लाख एक हजार है। यह तब है, जब पिछले छह साल में रेलवे की 72 हजार नौकरियों को हटा दिया गया है। केंद्र सरकार की नौकरियों का रुझान यह है कि केंद्र सरकार स्थायी नौकरियां देने की बजाए अनुबंध यानि ठेके पर नौकरियां दे रही है। सरकार के श्रम मंत्री ने संसद के पटल पर जवाब दिया कि साल 2019 में केंद्र सरकार में ठेके पर काम करने वाले कर्मचारियों की संख्या तकरीबन 13 लाख थी। साल 2021 में बढ़कर यह 24 लाख हो गयी। मतलब सरकार चाहती है कि सरकारी नौकरी के तामझाम से मुक्ति मिल जाए। अगर ऐसे रुझान है तो कैसे माना जाए कि एक ट्वीट से ही अगले डेढ़ साल में दस लाख नौकरियां मिल जाएगी? केंद्र सरकार की नौकरियों में तकरीबन 8 लाख 72 हजार रिक्तियां हैं। इसमें भी सबसे अधिक नौकरियां ग्रुप सी की हैं। ग्रुप सी के तकरीबन 7 लाख 56 हजार पद खाली हैं। यानी केंद्र सरकार अगर ग्रुप सी के पद ही भर दे तो वह दस लाख के पास चले जाएगा। मतलब हकीकत में ज्यादा से ज्यादा इतना हो सकता है कि पहले से खाली पड़े पद भरे दिए जाएंगे और प्रचार नई नौकरी का किया जायेगा। इसलिए ट्वीटर पर की गयी डेढ़ साल में दस लाख नौकरी देने का ऐलान सच कम जुमलेबाजी का हिस्सा ज्यादा लगता है।



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